नई तकनीकें अस्थि कैंसर में दे रही हैं राहत
बोन कैंसर यानी हड्डियों का कैंसर अब न तो लाइलाज है और न ही इसकी वजह से अंग काटने की नौबत आती है। विशेषज्ञों का दावा है कि नवीनतम तकनीकों की मदद से समय रहते बोन कैंसर का पता लगा कर उसका इलाज किया जा सकता है। इन आधुनिक तकनीकों की मदद से बोन कैंसर के कारण होने वाली मृत्यु दर घटाने में मदद मिली है। राजीव गांधी कैंसर इन्स्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर के कन्सल्टेन्ट ऑर्थोपेडिक ओन्कोलॉजिस्ट डॉ. अक्षय तिवारी ने बताया ‘अब बोन कैंसर अर्थात ऑस्टियोसरकोमा के 80 से 90 फीसदी मामलों में जो सर्जरी की जाती है उसमें अंगों को काटना नहीं पड़ता। पहले बोन कैंसर वाले अंग को काटना मानक इलाज माना जाता था। अब ऑस्टियोसरकोमा का अगर समय रहते पता चल जाए तो इसके 60 से 70 फीसदी मरीजों को उनके अंग काटे बिना बचाया जा सकता है।
’इंडियन ऑर्थोपेडिक एसोसिएशन के मानद सचिव और ईएसआईपीजीआईएमएसआर के डीन डॉ. सुधीर कपूर ने बताया ‘बोन ट्यूमर हड्डियों में ही पैदा होता है और विकसित होता है। बोन कैंसर वाले करीब 35 फीसदी बच्चों को इस बीमारी का कारण यह ट्यूमर होता है। ऐसे बच्चों को बड़े होने पर भी बोन कैंसर होने की आशंका रहती है।’ कैंसर की रोकथाम और इससे निपटने के लिए रणनीतियां बनाने और प्रयासों को और पुख्ता बनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र, विश्व स्वास्थ्य संगठन, विभिन्न सरकारें और बड़े स्वास्थ्य संगठन हर साल चार फरवरी को विश्व कैंसर दिवस मनाते हैं। विश्व कैंसर दिवस की शुरूआत ‘यूनियन फॉर इंटरनेशनल कैंसर कंट्रोल’ (यूआईसीसी) ने वर्ष 1933 में जिनीवा में की थी।
इस साल विश्व कैंसर दिवस की थीम ‘कैंसर.. क्या आप जानते हैं? है जो कैंसर के बारे में व्याप्त भ्रांतियों और उन्हें दूर करने की जरूरत पर केंद्रित है। डॉ. कपूर ने कहा ‘कई मरीजों को जब इस बीमारी का पता चलता है तब तक यह बीमारी अंतिम अवस्था में पहुंच चुकी होती है और प्रभावित अंग को काटने के अलावा और कोई चारा नहीं रहता। यह बीमारी लाइलाज नहीं है लेकिन आज भी हड्डियों से जुड़ी तकलीफ को लोग गंभीरता से नहीं लेते और शुरू में इस समस्या का पता ही नहीं चल पाता।’ डॉ. कपूर ने कहा कि नवीनतम तकनीकों में प्रोस्थेसिस का उपयोग प्रमुख है। इसकी मदद से उस हड्डी को ही हटा दिया जाता है जहां कैंसर वाला ट्यूमर बनता है। डॉ. तिवारी के अनुसार, एक अन्य तकनीक है एक्स्ट्राकारपोरियल रेडियोथरेपी एंड रीइम्प्लान्टेशन। इस तकनीक में ट्यूमर हटाने के बाद, उस हड्डी को निकाल कर रेडियोथरेपी दी जाती है। इस दौरान मरीज एनेस्थीसिया के असर के कारण बेहोश रहता है। रेडियोथरेपी के बाद हड्डी फिर से यथास्थान पर लगा दी जाती है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. शिशिर रस्तोगी ने कहा कि बच्चों और किशोरों को हड्डियों का कैंसर होने की आशंका अधिक होती है। शुरू में दर्द को या इससे जुड़ी अन्य समस्याओं को हल्के तौर पर लिया जाता है। समय रहते अगर बीमारी का पता चल जाए तो उसका इलाज हो सकता है।