गंगा पहुंचीं पांटून पुल पर

गंगा पहुंचीं पांटून पुल पर
कुंभ नगर, ऊषाकाल संवाददाता। गंगा का लगातार बढ़ता जलस्तर मेला प्रशासन के लिए परेशानी का सबब बना है। बुधवार को जलस्तर इतना बढ़ा कि 18 नंबर पांटून पुल बंद करना पड़ा। कहा जा रहा है कि यदि धारा बदलती है तो कई घाटों को नुकसान पहुंच सकता है।
मकर संक्रांति के स्नान पर्व से ही गंगा का रुख दिन प्रतिदिन बदलता रहा है। प्रथम स्नान पर्व से पहले ही पश्चिमी वाहिनी हो चुकी गंगा ने घाटों को कई बार डुबोया। प्रशासन का दावा था कि वह 29 घाटों का निर्माण करेगा, मगर गंगा ने उसकी इस मंशा को पूरा नहीं होने दिया। मौनी अमावस्या स्नान पर्व पर ही सबसे ज्यादा 22 घाट ही बन पाए। गंगा के तेवर का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उनके कहर से बचने के लिए सिंचाई विभाग को हजारों क्रेट्स बनाने पड़े, तब कहीं जाकर गंगा की लहरों से तटबंधों को बचा पाने में थोड़ी-बहुत कामयाबी मिल पायी। कभी सेक्टर छह व सात तो कभी सेक्टर 9 व 10 गंगा के निशाने पर रहे। हर प्रमुख स्नान पर्व पर घाटों का लेबल ऊंचा होता गया।
बुधवार की दोपहर में गंगा की धारा ने फिर करवट ली और इस बार निशाना बना 18 नंबर पांटून पुल। इस पुल का प्रयोग मेला क्षेत्र से अरैल की तरफ जाने के लिए हो रहा था। गंगा अब पुल के बीच से होकर बह रही हैं। इस पुल से यातायात बंद कर दिया गया है। अब पुल नंबर 17 ही अरैल से मेला क्षेत्र जाने के लिए एकमात्र रास्ता रह गया है। सिंचाई विभाग क्रेट्स लगाकर लगातार पानी के कटान को कम करने की कोशिश में लगा है। स्थिति नियंत्रण में आ रही है। पांटून पुल पर सवाल
जिस समय गंगा का पानी पांटून पुल नंबर 18 पर चढ़ आया, तो लोग भयभीत हो उठे। श्रद्धालुओं में अफवाह फैल गई कि पुल के बीच वाले पीपे गंगा में बह गए। बाद में लोगों को सच्चाई पता चली तो लोक निर्माण विभाग की कारगुजारी पर चकित रह गए। सवाल था कि आखिर किसने यह निर्णय लिया कि गंगा के बीच से होकर गुजरने वाले सबसे संवेदनशील पीपे के पुल के बीच में पीपा न लगाया जाए। पुल के बीच में पीपे लगाने की बजाए चकर्ड प्लेट से रास्ता बना दिया गया। इस पर शुरू में ही सवाल उठा था और प्रशासन का जवाब था कि बीच में पानी नहीं है और इस वजह से यह निर्णय लेना पड़ा। अब सवाल यह है कि यदि इस बीच कोई हादसा हो गया होता तो कौन जिम्मेदारी लेता।